अन्न देवता का अपमान न करे
अन्न से ही मानव शरिर की रचना हुई है | शरीर अन्न का कोष है | हमे शकित व् जीने की प्रेरणा अन्न द्वारा ही प्राप्त होती है | अन्नोत्पादं में हमारा काफी श्रम व् उर्जा क्षय होती है , अतएव हमे उतना ही भोजन ग्रहण करना चाहिए, जितना आवश्यक हो | भोजन जूठा छोड़ना या भोजन की थाली भरी छोड़ देना , अन्न का अपमान है |
अन्न का अपमान करना दुर्भाग्य का सूचक है | भोजन करने के उपरांत हमे हमेशा अन्न देवता को धन्यवाद करना चाहिए और इस्वर से यह प्राथना करनी चाहिए की हमारा घर धन - धान्य से सम्पन्न व् सुखी रहे | हमे यह भी धयान रखना चाहिए की रात्रि में शयनकक्ष में भोजन करना व् जूठी थाली को पलंग निचे रख देना दुर्भाग्य को आमंत्रित करना है |
अन्न से ही मानव शरिर की रचना हुई है | शरीर अन्न का कोष है | हमे शकित व् जीने की प्रेरणा अन्न द्वारा ही प्राप्त होती है | अन्नोत्पादं में हमारा काफी श्रम व् उर्जा क्षय होती है , अतएव हमे उतना ही भोजन ग्रहण करना चाहिए, जितना आवश्यक हो | भोजन जूठा छोड़ना या भोजन की थाली भरी छोड़ देना , अन्न का अपमान है |
अन्न का अपमान करना दुर्भाग्य का सूचक है | भोजन करने के उपरांत हमे हमेशा अन्न देवता को धन्यवाद करना चाहिए और इस्वर से यह प्राथना करनी चाहिए की हमारा घर धन - धान्य से सम्पन्न व् सुखी रहे | हमे यह भी धयान रखना चाहिए की रात्रि में शयनकक्ष में भोजन करना व् जूठी थाली को पलंग निचे रख देना दुर्भाग्य को आमंत्रित करना है |
No comments:
Post a Comment