Monday 27 February 2012

Rugved

द्वितीय मंडल-प्रथम अद्याय -सूक्त -१
हे अग्ने ! तुम यज्ञं काल में प्रगट होकर दिप्तियुक्त और पवित्र होओं ।तुम जल से उत्पन्न हो ।पाषाण,वन और औषधि में प्रसन्न होते हो ।(१)
हे अग्ने ! होता आदि कर्म तुम्हारा ही है ।अज्ञं की अभिलाषा करने पर प्रशास्ता अदवर्यु और ब्रह्मा भी तुम्ही हो ।हमारे घरो के तुम्ही पालक हो (२)
हे अग्ने !तुम सज्जनों का मनोरथ पूर्ण करने वाले एवं बहुतो द्वारा स्तुत्य हो ।तुम विष्णुरूप ,स्तुतियो के स्वामी तथा अधिस्वर एवं बुद्धि -प्रेरणा में समर्थ हो ।३।
हे अग्ने !तुम नियमो   में अटल  वरुण स्वरूप हो । तुम शत्रुओ के हनन -कर्ता ,साधुओ के पालक हो । तुम्ही अर्यमा रूप   से व्यापक दान के स्वामी हो । तुम ही सूर्य हो । हमारे यज्ञं में अभीष्ट फल दो ।४।
हे अग्ने ! तुम साधक के पुरुषार्थ रूप ,स्तुतियो के स्वामी और त्वष्टा हो । तुम मित्र- भाव से युक्त प्रेरणा प्रद एवं तेजवान हो । तुम अत्यंत धनी और बल के स्वरूप हो । उत्तम अस्वयुक्त धनो के देनेवाले हो ।५।
हे अग्नि देव !तुम उग्रकर्मा रूद्र एवं मरूद गण  की  शक्ति स्वरूप हो ।तुम अन्नों के स्वामी ,सुख के आधार हो । रक्त वर्ण के अस्व पर गमन करनेवाले हो ।तुम ही पूषा रूप से मनुष्यों की हर प्रकार रक्षा करते हो ।।६।
हे अग्ने ! यजमान को दिव्यलोक दिलाते हो ।तुम सूर्य रूप से प्रकाशित रत्न रूपी धनो के आधार एवं ऐश्वर्य के देनेवाले हो ।तुम अपने साधक यजमान के पालनकर्ता हो ।७।
हे अग्ने !साधक तुम्हे घरो में प्रज्वलित करते है ।तुम रक्षक ,प्रकाशवान और अनुग्रह बुद्धि वाले हो ।तुम हवि स्वामी असंख्य फलो के देने वाले हो ।८।
हे अग्निदेव !अज्ञनो में तुम पिता के समान तृप्त किये जाते हो ।कर्मो द्वारा संतुष्ट करके मित्र बनाये जाते हो ।तुम अपने सेवक के रूप में पुत्र रूप होते उए उसे यशस्वी बनाते हो ।तुम हमारी मित्र रूप से रक्षा करो ।१।
हे पावक !तुम रुभु रूप से स्तुतुयो के योग्य हो ।तुम अन्न धन के स्वामी एवं प्रकाशमय हो ।तुम यज्ञं -निर्वाहक और उसके फल को बढ़ाने वाले हो ।१०।  
हे  अग्ने !तुम अदिति रूप हो  ,होता और वाणी भी हो ।स्तुतियो द्वारा बढ़ते हो ।तुम्ही धनो के रक्षक एवं वृत हनन कर्ता हो ।११।
स्तुतियो द्वारा अग्ने !तुम्ही अन्न रूप एवं ऐश्वर्यवान हो । तुम दु:खो से उबारनेवाले और सर्व व्यापी हो ।१२।
हे अग्ने  ! तुम आदित्यो  के मुख एवं देवता ओ के जीभरूप हो   ।याज्ञ्नो में अभीष्ट देने के लिए एकत्रित हुए देवता तुम्हारी चाहना करते हुए तुम्हे दी गई  हविया ग्रहण करते है ।१३।
हे पावक !सभी अमर धर्मा देवता तुम्हारे मुख में दी गई हवीय खाते है ।मरण धर्मा  वाले जिव तुम्हारे अन्न को प्राप्त करते है ।तुम औषधादि   के गर्भ रूप हो ।१४।
हे अग्ने !तुम देवताओ से मिलकर भी अलग रहते हो ।तुम उत्तम प्रकार से उत्पन्न होकर बल ग्रहण करते हो ।तुम्हारी महिमा से आकाश -पृथ्वी के मद्य यज्ञं -स्थित अग्ने व्याप्त होता है ।१५। 
हे अग्नि देव ! विद्वान् साधको को गवादी धन दान वालो को श्रेष्ठ निवास हो ।हम वीर संतान से युक्त हुए यज्ञं में श्रेष्ठ स्तुतिया करते है ।१६। 

रूशी गुत्स्मद : ने  आजसे  ४००० हजार साल पहले इस सूक्त की रचना की थी  ।इस सूक्त के देवता अग्नि देव है :। इस सूक्त का छंद जगती है ।
इस सूक्त का हिंदी में अनुवाद  करके  आपके सामने  रखा है ।असल सूक्त संस्कृत लिपि में  लिखा गया है । और भारत के प्राचीन ग्रन्थ रुग्वेद में द्वितीय मंडल  का प्रथम सूक्त है ।
धन्यवाद 
दुसरे सूक्त के लिए प्रतीक्षा करे !

Thursday 2 February 2012

CHAMPAKLAL GURU

ગૃહ પ્રવેશ 
સૌ પ્રથમ ગૃહ પ્રવેશ વખતે પંચાંગ શુદ્ધિ જોવી પંચાંગ એટલે પાંચ અંગ 
(૧)તિથી 
(૨)વાર 
(૩)નક્ષત્ર 
(૪)યોગ 
(૫)કરણ
જો ગૃહ પ્રવેશ વખતે  રવી ,મંગલ વાર તેમજ તિથી ચોથ ,નવમ .ચૌદશ ,અમાવશ તથા નક્ષત્ર વિશાખા ,જયેષ્ઠા ,આદ્રા ,આશ્લેષા   ,મેઘા તથા   યોગ વૈધૃતિ ,વ્યતિપાત ,મહાપાત તથા કરણ વિષ્ટિ હોય તો પ્રવેશ કે ઘરનો આરંભ કરવો નહી અને જો કરીએ તો અનેક પ્રકારની આપત્તિઓ નો સામનો કરવો પડે .
ગૃહના આરંભ વખતે ઘરના માલિકના નક્ષત્રથી દૈનિક નક્ષત્ર ત્રીજું ,પાંચમું અને સાતમું નક્ષત્ર ના લેવું . જો લેવામાં આવે તો અનેક પ્રકારના દુખો જીવનમાં આવે છે .ગૃહ પ્રવેશ વખતે બાર રાશિઓના સૂર્યના ફલ  ખાસ જોવું .
વૃષભના સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી ધન ધાન્યની વૃદ્ધિ  થાય છે 
મિથુન સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી મૃત્યુ તુલ્ય કષ્ટ 
કર્ક સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી શુભ ફળદાયી 
સિંહના સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી કુટુંબ વૃદ્ધિ 
કન્યાના સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી રોગવૃદ્ધિ 
તુંલાના સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી સુખ સમૃદ્ધિ -શાંતિ 
વૃશ્ચિકના સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવથી ધન ધાન્ય ની વૃદ્ધી.
ધનના સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી મોટા પ્રમાણમાં નુકસાન  
મકર સુર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી ધન સંપતિની વૃદ્ધી .
કુંભના સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી રત્નોનો લાભ 
મીન સૂર્યમાં ગૃહ પ્રવેશ કરવાથી ચોર શત્રુનો ભય રહે છે 
 એટલે મિથુન .કન્યા  ,ધન અને મીનના સૂર્યમાં નવા મકાનનું નિર્માણ ન કરવું .